वामपंथ द्वारा प्रारम्भ हत्या की राजनीति

एक पुस्तक जो कि अमेरिका में 1997 में प्रकाशित हुई जिसकी चर्चा पूरे विश्व भर में हुई । किन्तु भारत के विद्वानों में यह चर्चा का विषय नही बन पायी । पुस्तक का नाम "द ब्लैक बुक ऑफ कम्युनिज्म : क्राइम टेरर रिप्रेशन" है। पुस्तक के लेखक स्टीफन कोर्टीस ,निकोलस वर्थ ,आंद्रजेज एवं यूरोप के अन्य विद्वानों के सम्मिलित प्रयास से लेखन किया गया है ।

पुस्तक का मुख्य विषय कम्युनिस्ट राज्य में किए गए राजनीतिक दमन के साथ साथ सामूहिक हत्या फांसी , देश निकाला , श्रमिकों की सामूहिक रूप से हत्या करना  या गरीबी निर्माण कर लोगों को भूखे मारना हो  आदि का विस्तृत विवरण  है।  पुस्तक मूल रूप से फ्रेंच भाषा में लिखित है जिसे हावर्ड विश्वविद्यालय प्रेस ने अंग्रेजी में प्रकाशित किया है।

 पुस्तक के प्रथम अध्याय में वामपंथ  शासन व्यवस्था द्वारा किए अपराध की चर्चा है यह अपराध मृत्युदंड हो, फांसी ,गरीबी , भुखमरी शासन द्वारा सबसे ज्यादा हत्या नाजियों से भी ज्यादा किया गया ।
इसी  अध्याय में अलग अलग देशों में कुल    वामपंथ  शासन द्वारा  हत्याओं की  संख्या 940 लाख है । जिसमें फांसी की सजा , मानव निर्मित गरीबी या भुखमरी , युद्ध और गुलाम श्रमिकों की संख्या समाहित है । अलग अलग देश के अनुसार जहां पर कम्युनिस्ट ने शासन किए हैं ।  चीन में 650 लाख , सोवियत संघ में 200 लाख , कंबोडिया में 20लाख , नार्थ कोरिया में 20 लाख,  इथोपिया में 17 लाख , अफगानिस्तान में 15लाख , वियतनाम में 10लाख एवं लगभग 15 लाख हत्या अन्य स्थान पर जहां वामपंथी पूर्ण सत्ता में नहीं रहे जिसमे भारत की भी संख्या सम्मिलित है ।जिनकी हत्या की गई उसमें से मुख्य रूप से श्रमिक , राजनीतिक विरोधी और महिलाएं सम्मिलित हैं।

 अगर हम इसे भारत के परिपेक्ष्य  में देखते हैं तो हत्या की राजनीति भारत में वामपंथियों द्वारा प्रारंभ किया गया ।  पश्चिम बंगाल केरल त्रिपुरा राज्य आज इसके ज्वलंत उदाहरण है।
भारत का युवा वर्ग जो आज का मतदाता है वह सब प्रकार से सोच-समझकर इतिहास को पढ़ समझ कर वह हत्या और लड़ाई में विश्वास नहीं करता है । इसीकारण से भारत में वामपंथी अपनी जमीन खोते जा रहे हैं ।  भारत में वामपंथ का जड़ खोने  का एक और कारण भारत की मूल संस्कृति का विरोधी है जिसे भारतीय समाज  हिंदू संस्कृति कहता हैं ।

हिंदू संस्कृति का मूल सहिष्णुता सह-अस्तित्व व धर्म आधारित है ।  किंतु वामपंथ ने साहित्य, कला , संगीत,  इतिहास लेखन आदि के माध्यम से इस संस्कृति को नकारने का असफल प्रयास किया । आज इतिहास और पूर्वजों के प्रति घृणा और निम्न सोच का प्रसार कुत्सित प्रयास वामपंथ द्वारा किया गया , किंतु समय रहते भारतीय समाज ने अपने मूल जड़ों को पहचाना और अपनी जड़ों से अपनी जमीन से जुड़े रहने का सफल संघर्ष किया ।94 वर्ष से भारतीय समाज के मूल चेतना के प्रति जागृत करने का कार्य बहुतायत मात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया है  । जिसका परिणाम है कि भारत की धरती पर हजारों वर्षों की परंपरा संस्कृति एवं समाज को उठ खड़े होने का विश्वास जागृत हुआ है ।

वामपंथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में लगभग एक साथ होती है किंतु आज शासन की मलाई 70- 75 वर्ष खाने के बाद वामपंथ की उल्टी सांसे चल रही हैं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हर भारतीयों के दिलों में उत्साह  का संचार कर रहा है।  

Comments

  1. आपके विचार सादर आमंत्रित है ।

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    1. भैया जी जो भी आप अपने सब्दो वर्णन किये है उसमे कोई संदेह नही है। बहुत ही अच्छे से आप अपने विचार को प्रकट किये है । आपका विचारो से हम सब योवाओ को सिखने को मिलता है ।

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  2. रवि जी भगवा प्रणाम आपने सही लिखा है ।

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  5. रवि जी आपके विचारों से हम सब को हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है और ग्यान को बड़ाने वाले होते हैं।

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  6. आपने सही लिखा है ,ये सब वामपंथी हत्यारे है

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  7. अति आवश्यक तथ्यों से पूर्ण।

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  8. Aapka rashtriya vichar dhara sada sammanit yogya hai..Kyuki rashtriya swayamsevak sangh har bhartiyo ke dilo paar utsah ka sanchaar kar raha hai..Rashtriya swayamsevak sangh par pure rashtriya ka dharohar nirmit hai.

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  10. बहुत सटिक लिखा है आपने भैया ।।

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  11. वामपंथी इस राष्ट्र के लोकतांत्रित व्यवस्था के लिए उतने ही खतरनाक है जितना चीन। वामपंथियों ने हमेशा से देशद्रोहियों को प्रोत्साहित कर देश के आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया है।

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  12. आपका विचार मुझे बहुत अच्छा लगा वामपंथी इस देश के लिए उतना ही खतरनाक हैं जितना बढ़ती इस्लामी जनसंख्या।

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  13. पूरे राष्ट्र से वामपंथ का सफ़ाया लगभग हो गया पर बैंकिंग सेक्टर में आज भी वामपंथी सगठन की अधिकता है ।9 ट्रेड यून्यन हैं बैंकिंग सेक्टर में में जिसमें अधिकतर वामपंथ के यून्यन हैं । एक nobw एवं ncbe है जो वामपंथी संगठन नहि हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को बैंकिंग सेक्टर में अपनी संख्या विस्तार का विचार गम्भीरता से करना चाहिए। अपने धनबाद में ही मुश्किल से 10 से 15 सदस्य होंगे जो वामपंथी विचारधारा के नहि हैं।

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