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धर्मान्तरण एवं घर वापसी पर स्वामी विवेकानंद के साक्षात्कार

(पत्रिका :- प्रबुद्ध भारत अप्रैल 1899 )   संपादक द्वारा हमें कहा गया कि स्वामी विवेकानंद का साक्षात्कार धर्मांतरण एवं घर वापसी पर लेना है।  शाम का समय , आनंददायक  स्थान  हमारे ऊपर आसमान में तारे और सामने बहती हुई गंगा एवं कुछ हरे भरे पेड़ ।  स्वामी जी से मैं मिला ----- मैं आपसे मिलना चाहता था स्वामी जी , विषय था कि जो हिन्दू दूसरे धर्मों में चले गए हैं उन्हें वापस लाना चाहिए आपका क्या विचार है? स्वामी विवेकानंद जी ने कहा -- अवश्य वे आ सकते हैं और उन्हें अवश्य लाना ही चाहिए।  थोड़ी देर चुप रहने के बाद ----सोचते हुए बोले --नहीं तो हम संख्या में कम हो जाएंगे ।  स्वामी विवेकानंद आगे कहते हैं जब पहली बार मुसलमान यहां आए  तब मुसलमानो का प्राचीनतम इतिहासकार कहता है कि 600 मिलियन हिन्दू थे । आज हम 200 मिलियन हो गए । हम कम होते जा रहे है। प्रत्येक हिंदू व्यक्ति हमसे अलग होता है तो हमारा एक नया दुश्मन बन जाता है । ज्यादातर आज जो मुसलमान या क्रिश्चन है उन्हें तलवार के डर से धर्मांतरण किया गया है या तो धर्मांतरण हुए लोगो के वंशज हैं ।  यह गलत होगा कि इन्हें हिन्दू धर्म से दूर रखा

वामपंथ द्वारा प्रारम्भ हत्या की राजनीति

एक पुस्तक जो कि अमेरिका में 1997 में प्रकाशित हुई जिसकी चर्चा पूरे विश्व भर में हुई । किन्तु भारत के विद्वानों में यह चर्चा का विषय नही बन पायी । पुस्तक का नाम "द ब्लैक बुक ऑफ कम्युनिज्म : क्राइम टेरर रिप्रेशन" है। पुस्तक के लेखक स्टीफन कोर्टीस ,निकोलस वर्थ ,आंद्रजेज एवं यूरोप के अन्य विद्वानों के सम्मिलित प्रयास से लेखन किया गया है । पुस्तक का मुख्य विषय कम्युनिस्ट राज्य में किए गए राजनीतिक दमन के साथ साथ सामूहिक हत्या फांसी , देश निकाला , श्रमिकों की सामूहिक रूप से हत्या करना  या गरीबी निर्माण कर लोगों को भूखे मारना हो  आदि का विस्तृत विवरण  है।  पुस्तक मूल रूप से फ्रेंच भाषा में लिखित है जिसे हावर्ड विश्वविद्यालय प्रेस ने अंग्रेजी में प्रकाशित किया है।  पुस्तक के प्रथम अध्याय में वामपंथ  शासन व्यवस्था द्वारा किए अपराध की चर्चा है यह अपराध मृत्युदंड हो, फांसी ,गरीबी , भुखमरी शासन द्वारा सबसे ज्यादा हत्या नाजियों से भी ज्यादा किया गया । इसी  अध्याय में अलग अलग देशों में कुल    वामपंथ  शासन द्वारा  हत्याओं की  संख्या 940 लाख है । जिसमें फांसी की सजा , मानव निर्मित गरीबी